पलकें 70% कम झपकती हैं, तनाव और बेचैनी बढ़ जाती है; इससे बचने के ये चार तरीके याद रखें

एक रिसर्च के मुताबिक, कोरोनावायरस महामारी शुरू होने के बाद लोगों ने ट्विटर पर 24% और फेसबुक का 27% फीसदी अधिक समय बिताया है। सोशल मीडिया पर अब अधिक समय बिताना एडिक्शन बनता जा रहा है।

जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंड सोशल साइकोलॉजी में पब्लिश रिसर्च कहती है, सोशल मीडिया एडिक्शन का एंग्जाइटी और डिप्रेशन से सीधा संबंध है। इसके अधिक उपयोग से कार्टिसोल और एड्रेनेलिन हार्मोन्स का स्तर बढ़ता है। ये तनाव को बढ़ाने वाले प्रमुख हार्मोन्स हैं।

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक स्टडी कहती है, जब कोई इंसान स्क्रीन पर काम करते हुए अधिक इन्वॉल्व हो जाता है तो उसके पलक झपकने की स्पीड 70% तक कम हो जाती है। इसका सीधा असर आंखों पर भी होता है। हेल्थ मैगजीन हेल्थलाइन ने सोशल मीडिया एडिक्शन से बचने के लिए कुछ तरीके बताए हैं। साथ ही इसके ओवरयूज का खतरा भी बताया है, जिसे आपको जानना चाहिए।

मन की खुशी के लिए डिजिटल डिटॉक्स के चार तरीके

1. सोशल मीडिया को मोबाइल पर नहीं, कम्प्यूटर पर इस्तेमाल करें
जो अधिक जरूरी नहीं है। उन एप्स की सेटिंग में जाकर नोटिफिकेशन ऑफ कर दें। इससे बार-बार फोन बीप नहीं होगा। आप बार-बार फोन चेक करने की आदत से बच पाएंगे।

2. बिना काम की एप्स के नोटिफिकेशन बंद कर दें
सोशल मीडिया से दूरी बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले अपना रोज का स्क्रीन टाइम जानें। सोशल मीडिया ऐप्स को मोबाइल से हटा दें। सोशल मीडिया का इस्तेमाल लैपटॉप या कम्प्यूटर के जरिए करें।

3. सोशल मीडिया के लिए रोज का खास समय तय करें
सोशल मीडिया बेहद जरूरी लगता है तो आप इसके लिए एक खास समय तय कर सकते हैं। इससे आपकी काम की प्रॉडक्टिविटी भी प्रभावित नहीं होगी।

4. नियम बनाएं, नई हॉबी डेवलप करें, दोस्तों से मिलना शुरू करें
फोन की आदत से बाहर आने के लिए घर में कुछ नियम बनाए जा सकते हैं। जैसे : ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के समय फोन पूरी तरह बंद करना। सोते समय फोन को बेडरूम से बाहर रखना भी एक विकल्प हो सकता है। इसी तरह कुछ नया सीखने की कोशिश करें। मनपसंद खेल खेलना शुरू करें। दोस्तों से फोन के जरिए नहीं, सीधे मिलने की कोशिश करें।

यह खतरा भी समझें : पोस्ट लाइक करने की खुशी बाद में नशा बनती है
जब भी आप अपने फेवरेट ऐप पर लॉगइन करते हैं आपके दिमाग में डोपामाइन सिग्नल बढ़ जाते हैं। इन न्यूरोट्रांसमीटर्स का सीधा संबंध खुशी और आनंद से होता है। जैसे-जैसे आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल बढ़ाते जाते हैं आपके मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर बढ़ता जाता है। इस दौरान आपका मस्तिष्क इस गतिविधि को खुद के लिए एक रिवार्ड के रूप में याद कर लेता है जिसे वह बार-बार दोहराना चाहता है।

यह खुशी तब और बढ़ जाती है जब आप कोई पोस्ट डालते हैं और उस पर आपको सकारात्मक फीडबैक मिलता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पॉजटिव फीलिंग केवल थोड़ी देर के लिए ही होती है। इसके बाद जैसे ही आपके मस्तिष्क में डोपामाइन का असर कम होता है आप दोबारा सोशल मीडिया में पहुंच जाते हैं। फिर यह बार-बार होने लगता है। मस्तिष्क को यह फीलिंग अन्य एडिक्शन में भी होती है।



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